28 अक्टूबर 2017
याचिका और विशेषाधिकारों पर दिल्ली विधान सभा समितियों के अध्यक्ष श्री सौरभ भारद्वाज और श्री मदन लाल ने शनिवार को पत्रकारों से बात करते हुए कहा कि ‘उच्च न्यायालय द्वारा पीडब्ल्यूडी के प्रधान सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी करने का फैसला कार्यकारी की जवाबदेही तय करने के लिए ही है, यह ठीक वही प्रयास है जो कई महीनों से विधानसभा समितियों द्वारा किया जा रहा है।
मीडिया को संबोधित करते हुए समितियों के अध्यक्षों ने कहा कि दिल्ली विधान सभा समितियां भारत के संविधान और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली अधिनियम, 1991 द्वारा तय की गई इन समितियों में निहित शक्तियों के अनुसार ही कार्य कर रही हैं।
विधानसभा समितियों के अध्यक्षों ने कहा कि ‘माननीय उच्च न्यायालय द्वारा कारण बताओ नोटिस जारी करने के फैसले ने यह साबित कर दिया कि अपने काम में अनियमितता बरतने वाले अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि जून में सदन में पेश की गई अपनी रिपोर्ट में असेंबली की याचिका समिति ने पाया था कि जिन अधिकारियों ने मॉनसून से पहले नालियों की desilting के बारे में झूठ बोला था, अब यह साबित हो गया है कि उन्हीं अधिकारियों ने माननीय उच्च न्यायालय से भी झूठ बोला है।
विधानसभा समिति अध्यक्षों ने आश्चर्य व्यक्त किया कि केंद्र सरकार ने उच्चतम न्यायालय और दिल्ली उच्च न्यायालय में सदन समितियों के अधिकारों और विशेषाधिकारों पर एक विरोधाभासी रुख अपना लिया है।
पिछले हफ्ते सर्वोच्च न्यायालय की संविधान खंडपीठ के समक्ष पेश होने वाले अटॉर्नी जनरल ने कहा था कि अदालतों द्वारा संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित समितियों के कामकाज में हस्तक्षेप नहीं किया जाना चाहिए।
हालांकि, दिल्ली उच्च न्यायालय में केंद्र सरकार की तरफ़ से उपस्थित हुए एक अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ने विरोधाभासी रुख अपनाते हुए कहा कि सदन की समितियों की कार्यवाही पर अदालत के किसी भी हस्तक्षेप पर केंद्र को कोई आपत्ति नहीं है।
विधानसभा समितियों के अध्यक्षों ने कहा कि संविधान के अनुसार लोकतंत्र के संसदीय रूप में, लोकतंत्र के सभी स्तंभ – विशेष रूप से विधायिका और न्यायपालिका को एक-दूसरे के अधिकारों का सम्मान करने की आवश्यकता है ताकि लोकतंत्र के स्वतंत्र अंगों में से किसी के भी अधिकार क्षेत्रों में कोई दखलअंदाज़ी ना हो
विधानसभा समिति के अध्यक्षों ने कहा कि कुछ मामलों में विभिन्न सदन समितियों के सदस्यों ने उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ से असहमति जताई थी, क्योंकि न्यायालय द्वारा विधानसभा के विचारों को सुनें बिना ही अधिकारियों को राहत दे दी गई थी। हालांकि माननीय विधानसभा अध्यक्ष श्री राम निवास गोयल ही इस बिंदु पर विचार करेंगे कि कैसे विधानसभा के विचार न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए जाएंगे ताकि विधानमंडल और न्यायपालिका एक-दूसरे के फ़ैसलों और अधिकार क्षेत्र का सम्मान करते हुए लोकतंत्र को ज़िदा रखेंगे।
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