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Statement by AAP Chief Spokesperson Saurabh Bharadwaj on the Narendra Modi govt decision to disqualify 20 elected Delhi MLAs :

A first reading of the Narendra Modi government appointed Election Commission’s biased opinion and subsequent notification issued by the BJP’s central government to hastily disqualify 20 elected Delhi MLAs shows Constitutional authorities today are behaving like hand maidens of the Central government.

Chief Election Commissioner and the Election Commissioners are expected to behave in an independent and impartial manner and not as political stooges of their masters who appoint them. Their unjustified and hasty opinions to please their political bosses will not stand legal scrutiny.

Last line on the final page of the EC opinion (page 120), signed by the then Chief Election Commissioner Dr Nasik Said and the then Election Commissioner AK Joti on 23/06/2017 states :“ The Commission will intimate the next date of hearing to all the concerned parties in the present proceedings in due course.”

 

It is beyond any reasonable understanding and  justification as to how the immediate successors of Dr Zaidi decided to overturn this written order and chose not to provide any hearing to the 20 MLAs after March 2017.

 

The EC is a Constitutional institution of continuity and not a retired members club of a group of political appointees.

 

Further, the EC has failed to answer the basic test laid down in numerous judgments by the hon’ble Supreme Court on the issue of office of profit. The Commission in its opinion has not been able to spell out what pecuniary gain these 20 MLAs got by becoming parliamentary secretaries ?

 

The EC, it appears is deliberately silent on why it has not cited the latest 2014 Supreme Court judgment in office of profit case. Nowhere has the Commission mentioned UC Raman Vs PTA Rahim SCC 934 A (2014).

This is because the Supreme Court had stated in this case :“This court has given categorical clarification on more than one occasion that an office of profit is an office which is capable of yielding a pecuniary gain. The very context in which the word profit has been used after the word OFFICE OF – shows that not all offices are disqualified, but only those which yield pecuniary gain.”

The EC deliberately chose to ignore the 2014 Supreme Court judgment because the Delhi government notification appointing these parliamentary secretaries on 13/03/2015 had made it clear they will not get any remunerative benefit in cash or kind.

The Aam Aadmi Party cannot be cowed down by such intimidatory tactics of Narendra Modi government, which has been proven time and again during last three years.

The party has complete faith in the judiciary and will challenge this biased, illegal and illogical order of the Modi government in courts of law.

For the AAP, it is not a matter confined to its 20 MLAs, the fight is for safeguarding the democracy and protecting Constitutional institutions from decimation

 

नरेन्द्र मोदी सरकार द्वारा दिल्ली के चुने हुए विधायकों को अयोग्य घोषित करने वाली अधिसूचना को पढ़ने के बाद और भारत के निर्वाचन आयोग के द्वारा दिल्ली के चुने हुए विधायकों के खिलाफ दी गई उनकी रिपोर्ट से यह सिद्ध हो जाता है कि आज भारत की संवैधानिक संस्थाएं किस तरह से केंद्र सरकार के इशारे पर काम कर रही हैं।

मुख्य चुनाव आयुक्त और चुनाव आयुक्तों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे स्वतंत्र और निष्पक्ष तरीके से व्यवहार करें, न कि उनको नियुक्त करने वाले उनके मालिकों के राजनीतिक हथियार के रूप में। उनके द्वारा अनुचित और जल्दबाजी में दी गई राय उनके राजनीतिक मालिकों को खुश करने के लिए हो सकती है लेकिन वो कानून के सामने टिक नहीं पाएगी।

चुनाव आयोग ने विधायकों को नोटिस के माध्यम से यह बताया था कि “आयोग सुनवाई की अगली तारीख के बारे में आपको सूचित करेगा, वर्तमान कार्यवाही में सभी संबंधित पार्टियों को उचित समय पर बता दिया जाएगा’

यह किसी की भी समझ से परे है कि डॉ ज़ैदी के उत्तराधिकारी ने तत्काल इस लिखित आदेश को समाप्त करने का निर्णय लिया और मार्च 2017 के बाद 20 विधायकों को सुनवाई के लिए बुलाया तक नहीं।

चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था है। यह संस्था कोई राजनीतिक नियुक्तियों से आने वाले सेवानिवृत्त सदस्यों का क्लब नहीं है।

इसके अलावा, चुनाव आयोग ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मुद्दे पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा कई फैसलों में निर्धारित मूल बिंदुओं का जवाब देने में भी विफल रहा है। आयोग अपनी राय में यह नहीं बता पा रहा है कि क्या 20 विधायकों ने संसदीय सचिव बनकर कोई लाभ हासिल किया है?

ऐसा प्रतीत होता है कि चुनाव आयोग यहां जानबूझकर चुप है क्योंकि उसने ऑफिस ऑफ प्रॉफिट के मामले में नवीनतम 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लेख नहीं किया। हम जानना चाहते हैं कि क्या आयोग ने यू सी रमन बनाम पीटीए रहीम एससीसी 934 ए (2014) केस का उल्लेख किया है?

इसका कारण यह है कि सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में कहा था: “इस अदालत ने एक से अधिक अवसरों पर स्पष्ट किया है कि “लाभ का कार्यालय एक ऐसा कार्यालय है जो आर्थिक लाभ हासिल करने में सक्षम हो। जिस संदर्भ में यह कहा गया कि प्रॉफिट शब्द का यह अर्थ यह नहीं कि सारे पद इसके दायरे में आते हैं। यह केवल उन लोगों के लिए है जो आर्थिक लाभ कमाते हैं।”

चुनाव आयोग ने जानबूझकर 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले को नजरअंदाज करने का फैसला किया क्योंकि 13/03/2015 को इन संसदीय सचिवों की नियुक्ति की दिल्ली सरकार की अधिसूचना ने स्पष्ट कर दिया था कि उन्हें नकद या किसी और अन्य तरह का लाभ नहीं दिया जाएगा।

आम आदमी पार्टी नरेंद्र मोदी सरकार के इन षडयंत्रों से डरने वाली नहीं है। मोदी सरकार पिछले तीन साल से लगातार ऐसी नाकाम कोशिश करती आई है।

आम आदमी पार्टी को न्यायपालिका में पूर्ण विश्वास है और हम न्यायालय में मोदी सरकार के इस पक्षपाती, अवैध और तर्कविहीन आदेश को चुनौती देंगे।

आम आदमी पार्टी की यह लड़ाई सिर्फ 20 विधायकों तक सीमित नहीं है, यह लड़ाई लोकतंत्र की सुरक्षा और संवैधानिक संस्थानों को बचाने के लिए है।

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sudhir

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