भारत के दो पूर्व वित्त मंत्रियों, श्री यशवंत सिन्हा और श्री पी चिदंबरम, दोनों ने पूर्व में कम से कम 10 केंद्रीय बजट प्रस्तुत किए हैं, दोनों पूर्व वित्त मंत्रियों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति पर गंभीर चिंता ज़ाहिर की है।
श्री यशवंत सिन्हा जी ने अपने एक लेख के ज़रिए ज़ाहिर किया है कि पिछले कई महीनों से देश के कई प्रमुख अर्थशास्त्री बोल रहे हैं कि – भारतीय अर्थव्यवस्था बेहद नाज़ुक स्थिति में पहुंच चुकी है, और भविष्य में ये बर्बादी की तरफ़ जा रही है।
भारतीय अर्थव्यवस्था की वर्तमान स्थिति बेहद चिंताजनक है, जो निश्चित रुप से एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है। यहां कोई पार्टी विशेष का मुद्दा नहीं है, बल्कि चिंता इस बात की है कि वर्तमान में केंद्र सरकार को चलाने वाले व्यक्तियों को आर्थिक नीतियों की कोई जानकारी ही नहीं है।
एक समय में तेजी से बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था को मोदी सरकार ने गढ्ढे में डाल दिया है, जो देश के लिए विनाशकारी परिणाम लेकर आएंगे।
जानिए, कैसे बीजेपी शासित केंद्र सरकार भारतीय अर्थव्यवस्था को गिरावट की तरफ़ से लेकर जा रही है
1 – साल 2014 में पूर्ण आर्थिक परिवर्तन के वादे के साथ बीजेपी सत्ता में आई। जैसा कि यशवंत सिन्हा जी ने व्यक्त किया, ऐसा लगता है कि भाजपा ने तीन साल में अपना लक्ष्य हासिल कर लिया है। आज देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह बर्बाद हो रही है
- सभी प्रमुख आर्थिक संकेतक बताते हैं कि कई सालों में अर्थव्यवस्था सबसे खराब स्थिति से गुज़र रही है। विश्व की सबसे तेज़ी से बढ़ती हुई प्रमुख अर्थव्यवस्था होने से, आज हम धीमे-विकास, कम-निवेश और घटती-नौकरी के साथ “फ्री-फॉल” अर्थव्यवस्था” बन गए हैं।
साल 2014 के बाद से सबसे कम जीडीपी विकास दर – हमारी विकास दर पिछले छह तिमाहियों में जनवरी-मार्च 2016 में 9.1% से लगातार गिर गई है, जो पिछली तिमाही में 5.7% रह गई है – साल 2014 के बाद से यह सबसे कम है। यह एक विपत्तिपूर्ण गिरावट है, खासकर उस स्थिति में जब ये आंकड़ें सामने आते हैं कि 1% जीडीपी विकास दर गिरने का मतलब होता है = 1.5 लाख करोड़ रुपये की राष्ट्रीय आय की हानि और लाखों नौकरियों का नुकसान।
25 वर्षों में सबसे कम निजी निवेश – देश की शीर्ष 1000 गैर-वित्तीय कंपनियों द्वारा नए निवेश ने वित्तीय वर्ष (वित्त वर्ष 2016-17) में सिर्फ 5.8% की सबसे कम वृद्धि दर्ज़ की है। इन कंपनियों ने जहां साल 2014 में 5.7 लाख करोड़ रुपए निवेश किए थे जो आंकड़ा अब साल 2017 में बुरी तरह से घटकर 2.07 लाख करोड़ रूपये रह गया है, यह साल 1992 के बाद से सबसे कम रह गया है।
8 वर्षों में सबसे कम नौकरी सृजन- भारतीय अर्थव्यवस्था में हर साल 1.2 करोड़ भारतीय नौजवान नौकरी के लिए तैयार हो जाते हैं। प्रधान मंत्री मोदी ने हर साल 1 करोड़ नौकरियों के निर्माण का वादा किया था जोकि स्किल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया और मेक इन इंडिया के ज़रिए निर्मित होने की बात थी। सबसे चिंताजनक बात यह है कि इन सब स्कीम्स के ज़रिए कोई रोज़गार सृजन नहीं हो रहा है और भारत सरकार के श्रम ब्यूरो से मिले आधिकारिक आंकड़े बताते हैं कि साल 2015 में केवल 1.55 लाख नौकरियां और 2016 में 2.31 लाख नौकरियां पैदा की गईं हैं। विनिर्माण के अलावा, आईटी और बैंकिंग जैसे सेवा उद्योगों से नौकरियों में भारी कटौती की जा रही है।
(भारतीय अर्थव्यवस्था में उदासी की तस्वीर हर जगह दिख रही है – देश के सभी वित्तीय मीडिया मंच, बड़े प्रतिष्ठित इंडस्ट्री प्रतिष्ठानों (एसबीआई, हिंदुस्तान लीवर, एल एंड टी आदि) सभी ने व्यक्त किया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था संकट में है।)
बड़ा सवाल यह है कि हम यहां कैसे आए?
प्वाइंट 2 – भारत सरकार के निर्णय अर्थशास्त्र या सामान्य ज्ञान कि बजाय राजनीतिक फ़ायदे-नुकसान पर आधारित होते हैं। नतीजतन, देश एक बड़े वित्तीय संकट की तरफ़ चल पड़ा है।
नोटबंदी एक पूर्ण विफलता थी – हम सभी जानते हैं कि नोटबंदी का निर्णय असल में क्या था। अब यह स्पष्ट है कि नोटबंदी से कोई कालाधन वापस नहीं आया, कृषि और एसएमई क्षेत्रों में एक अभूतपूर्व संकट खड़ा हो गया है। 15 लाख नौकरियां ख़त्म गईं और 150 लोगों की मौत नोटबंदी की वजह से हो गईं। अब सवाल ये है कि इस मानव निर्मित आपदा के लिए कौन जवाबदेह है?
- जीएसटी डिजाइन और रोलआउट– जीएसटी जैसी योजना को भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए सकारात्मक सुधार के रूप में हमने व्यापक रूप से स्वीकार किया। लेकिन भाजपा सरकार की अक्षमता ने इस योजना का बंटाधार कर दिया, आज हम वैश्विक स्तर पर सबसे जटिल जीएसटी संरचना रखते हैं, जो कि गंभीर अनुपालन के मुद्दों, अपेक्षाकृत कम कर-संग्रह और कपड़ा जैसे क्षेत्रों में संकट की स्थिति से प्रतीत भी होता है [1]। इसके अलावा, टैक्स स्लैब में कुछ आइटम 28% पर हैं जिससे कम कर संग्रह की वजह से सरकारें नुकसान में हैं। तुलनात्मक रूप से हम दिल्ली का अनुभव लें तो यह दिखाता है कि कर की दर को घटाकर 5% या 10% तक करें तो इसका व्यापारी अनुपालन भी सही ढंग से करते हैं और समग्र कर संग्रह में बढ़ोतरी भी हो जाती है।
- रेड राज – नोटबंदी और जीएसटी रोलआउट के बाद रेड राज अब वित्त मंत्रालय में धड़ल्ले से चल रहा है। इस साल फरवरी में, आईटी कानून की धारा 132 को संशोधित करके सरकार ने यह प्रावधान कर दिया कि केवल संदेह या अफवाह के आधार पर भी लोगों पर छापे मारे जा सकते हैं। तुलनात्मक रुप से अगर हम दिल्ली में पिछले 2 सालों में देखें तो दिल्ली सरकार द्वारा इस्पेंक्टर और रेड राज को पूरी तरह से रोकना ही दिल्ली के व्यापारियों और उद्योगों में विश्वास को बढ़ा देता है और आर्थिक विकास को तेज करता है क्योंकि व्यापारी फिर सरकार के साथ मिलकर कानून के मुताबिक ना केवल टैक्स भरते हैं बल्कि सरकार का सहयोग भी करते हैं।
3 वर्षों के बाद अब जाकर आर्थिक सलाहकार परिषद का गठन – इस परिषद का गठन ये साबित करता है कि पिछले 3 वर्षों में सरकार द्वारा लिए गए आर्थिक निर्णय भारतीय अर्थव्यवस्था ख़िलाफ़ थे।
प्वाइंट 3 – डर और असहिष्णुता की नींव पर सशक्त अर्थव्यवस्थाएं नहीं बनाई जा सकतीं
- भारत की सबसे बड़ी ताक़त संवैधानिक अधिकारों की सहिष्णुता और संरक्षण की संस्कृति है हालांकि पिछले 3 वर्षों में सत्तारूढ़ पार्टी द्वारा नफ़रत और असहिष्णुता का वातावरण व्यवस्थित रूप से प्रसारित किया जा रहा है। पत्रकारों की हत्याएं हो रही हैं, मीडिया को सरकार की कठपुतली बना दिया गया है और विपक्षी दलों को सरकारी जांच संस्थाओं के माध्यम से पीड़ित किया जा रहा है।
- यहां तक कि आरबीआई के पूर्व गवर्नर और विश्व के सर्वोच्च अर्थशास्त्री रघुराम राजन ने भी इस महीने की शुरुआत में कहा था कि असहिष्णुता भारत की आर्थिक वृद्धि को पटरी से उतार रही है।
प्वाइंट 4 – अभी तक के सबसे जरूरी और संरचनात्मक सुधारों को नजरअंदाज किया गया है क्योंकि वे मुद्दे सरकार में बैठे लोगों को ज़रुरी नहीं लगे।
- एनपीए का मुद्दा – जब इस सरकार ने 2014 में प्रभार लिया था, तब से ही यह स्पष्ट था कि भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए का मुद्दा अपने इतिहास में सबसे गंभीर स्थिति में था। तीन साल बीत चुके हैं, और समस्या सुलझने कि बजाए और ज्यादा खराब हो गई है, और बैंक लोन के रुप में डूबने वाली राशि 8 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। यह निजी निवेश और नौकरी की वृद्धि को भी सीधे रुप से प्रभावित कर रहा है
- काला धन – बीजेपी द्वारा लम्बे-लम्बे दावे किए गए हैं कि यह सरकार काले धन को लेकर गंभीर है, काले धन से निपट रही है। लेकिन हक़ीकत यह है कि स्विस बैंक खातों और पनामा पेपर्स के मुद्दे पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है।
मौद्रिक नीति – आरबीआई की नीतियां मुद्रास्फीति को बढ़ाने पर केंद्रित हो रही हैं, जिसकी वजह से ब्याज दरों में वृद्धि हुई और निवेश और खपत में कमी आई।
न्यूनतम मज़दूरी – बाज़ार में खपत केवल तभी बढ़ेगी जब देश में प्रत्येक परिवार की आय ठीक औसत पर होगी। हालांकि केंद्र ने 7वें वेतन आयोग की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया है, जबकि ‘नरेगा’ और दूसरे श्रमिकों सहित सभी क्षेत्रों में न्यूनतम मजदूरी का क्या होगा? इस साल की शुरुआत में दिल्ली सरकार ने इस मोर्चे पर एक ऐतिहासिक निर्णय लिया और अकुशल, अर्द्ध कुशल और कुशल श्रमिकों के लिए न्यूनतम मजदूरी में 37% प्रतिशत का इज़ाफ़ा किया।
आम आदमी पार्टी की मांग है कि मोदी सरकार को आर्थिक संकट से देश को बचाने के लिए तुरंत सुधारात्मक उपाय करने चाहिए। इस तरह से अहंकार में बैठे रहने से कुछ नहीं होने वाला ज़रुरी है कि सभी हितधारकों से परामर्श करना चाहिए, जिसमें राज्य की सरकारें भी शामिल हैं, और बड़े-बड़े अर्थशास्त्री भी।
प्रेस कॉंफ्रेंस की वीडियो यहां देखी जा सकती है-
Senior Aam Aadmi Party leader & Delhi Deputy Chief Minister and Finance Minister Manish Sisodia issued the following statement on the worrying condition of the country’s economy :
Two former Finance Ministers of India, Mr Yashwant Sinha and Mr P Chidambaram, both of whom have presented atleast 10 union budgets between them, have sound a very serious alarm on the current situation of Indian economy.
Mr Yashwant Sinha has today reiterated what many leading economists have been saying since recent months that – INDIAN ECONOMY IS ALREADY IN A MESS, IT IS FURTHER HEADED FOR DISASTER.
The current worrying condition of Indian economy, which is a matter of national concern and not a party specific issue is because the individuals running the Central Government have little understanding of economic policies.
From fastest growing economy, the Modi government has thrown the Indian economy into a free fall, which will have disastrous consequences for the country.
How has the BJP’s Central government Driven India’s Economy into Ground
Point 1 – BJP came to power in 2014 on the promise of complete economic transformation of the country. As Yashwant Sinha ji expressed today, it seems the BJP has achieved its goal in three years. The country’s economy is in complete shambles.
- All key economic indicators show that the Economy is going through its worst in many years. From being world’s fastest-growing major economy just one year ago, we have become a “free-fall economy” with slow growth, low investment and no jobs.
o Lowest GDP growth rate since 2014 – Our growth rate has fallen consistently over the last six quarters from 9.1% in Jan-Mar 2016 to 5.7% last quarter – the lowest since 2014. This is a catastrophic fall especially since 1 per cent lower annual GDP growth = loss of Rs 1.5 lakh crore national income and loss of millions of jobs. Manufacturing and Agriculture sectors, which employ a majority of Indians, have suffered the worst decline.
o Lowest Private Investment in 25 years – Fresh investments by the country’s top 1000 non-financial companies hit a new low of just 5.8% growth in fiscal year (FY) 2016-17, the slowest since 1992. In absolute terms, these companies invested only Rs 2.07 lakh crore in FY17 as against an all time high of Rs 5.7 lakh crore in FY 14.
o Lowest Job Creation in 8 years–Most worryingly, the state of the economy throws into dark the future of 1.2 crore Indian youth entering the job market every year. PM Modi promised to create 1 crore jobs every year and launched Skill India, Startup India and Make in India. None of these have worked so far as official figures from the Labour Bureau show that only 1.55 lakh jobs were created in 2015 and 2.31 lakh jobs in 2016. Besides manufacturing, massive job cuts are being reported from service industries such as IT and Banking.
(The picture of gloom in Indian economy is being echoed everywhere – all of the country’s financial media houses, most reputed industry leaders (SBI, Hindustan Lever, L&T etc.) have all expressed that the economy is in crisis.)
The big question therefore is how did we get here?
Point 2 – Decisions have been based solely on political rhetoric rather than sound economics or common sense. As a result, major financial reforms have been botched up
- Demonetisation was a complete failure – We all know whose decision was it. It’s clear now that Demo had negligibleimpact on black money, and ended upcreating an unprecedented crisis in agriculture and SME sectors. The unprecedented spate of farm loan waivers by several state governments are the legacy of demonetisation. Overall, 15 lakh jobs were lost and 150 people died due to hardship caused by demonetisation. Who is answerable for this man-made disaster?
- Botched up GST design and rollout – GST was widely accepted as a positive reform for the Indian economy. But thanks to this government’s incompetence, today we have among the most complicated GST structure globally which is causing severe compliance issues, lower than expected tax collections and a crisis-like situation in sectors such as textile[1].Moreover, tax slabs of many items are as high as 28%. In comparison, Delhi’s experience – based on sound economics – shows that reducing tax rates to 5% or 10% increases compliance and overall tax collections.
- Raid Raj – Post demonetisation and GST rollout, Raid Raj is now an accepted way of functioning in the Finance Ministry. In February this year, Section 132 of the IT Act was amended to legalise tax raids on people based on mere suspicion or unsubstantiated rumour. In comparison, Delhi has shown in the last 2 years that putting a complete stop to Raid Raj only boosts confidence among the traders and industry and spurts economic growth.
- Formation of Economic Advisory Council after 3 years – acceptance that decisions in past 3 years were devoid of sound economics
Point 3 – Strong economies cannot be built on a foundation of fear and intolerance
- India’s greatest strength has been its culture of tolerance and protection of constitutional rights
- However, over the last 3 years, a climate of hate and intolerance is being systematically propagated by the ruling party. Journalists are being killed, media has been become state puppet and opposition parties are being victimised through state institutions.
- Even the former RBI governor and one of world’s topmost economists, Raghuram Rajan, said earlier this month that intolerance will derail India’s economic growth.
Point 4 – Difficult yet most urgent structural reforms have been ignored because they they are not glamorous
- Issue of NPAs – Right from when this government took charge in 2014, it was clear that NPA issue in Indian Banking sector was the severest in its history. Three years have passed, and the problem has only worsened and reach to the point of Rs 8 lakh crore in loan defaults. This is adversely affecting private investment and job growth
- Black money – Tall claims have been made that this government was serious is tackling black money. Yet, there has been no action on the Swiss bank accounts and Panama papers issue.
- Monetary Policy – RBI has been too inflation focused leading to artificially high interest rates and dampening of investment and consumption
- Minimum wages – Private consumption will increase only if there is more disposable income in each household. While the Centre has accepted the 7th Pay Commission Recommendations, what about minimum wages in all sectors including for NREGA workers? Earlier this year, Delhi government took a historic decision on this front and increased minimum wages for unskilled, semi-skilled and skilled workers by 37%
The Aam Aadmi Party demands that Modi government should take immediate corrective measures to save the country from an economic disaster. It should not sit in ego and must consult all stakeholders, including elected state governments on how to salvage the situation.
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