नव-नियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने मीडिया को दिए अपने इंट्रव्यू में यह स्वीकार लिया है कि चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों को उनका पक्ष रखने का मौका नहीं दिया। चुनाव आयोग द्वारा विधायकों को सुनवाई के लिए बुलाया ही नहीं गया जो अपने आप में न्याय के सिद्धांत के खिलाफ़ है।
आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता एंव नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने कहा कि ‘मुख्य चुनाव आयुक्त ने आम आदमी पार्टी के विधायकों को बोलने का और अपना पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया और तुगलकी फरमान सुना दिया। चुनाव आयोग ने 23 जून 2017 को लिखित में कहा था कि वो आम आदमी पार्टी के विधायकों को सुनवाई के लिए बुलाएंगे लेकिन आयोग ने ऐसा नहीं किया और अपना एकतरफ़ा फ़ैसला सुना दिया।‘
मुख्य चुनाव आयुक्त के तौर पर फ़ैसला देने वाले ए के जोति ने भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के दवाब में आकर ये फ़ैसला दिया है, और ये सीधे-सीधे राजनैतिक षडयंत्र के तहत की गई कार्रवाई है।
आम आदमी पार्टी की सरकार दिल्ली के लोगों के लिए शिक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रही है, केजरीवाल सरकार स्वास्थ्य के क्षेत्र में बेहतरीन काम कर रही है इसलिए प्रधानमंत्री मोदी और भारतीय जनता पार्टी को सहन नहीं हो रहा और दिल्ली की जनता के बहुमत को भी नकारने का काम भारतीय जनता पार्टी संवैधानिक संस्थाओं के माध्यम से ग़लत रास्ता अपना कर करा रही है।
आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता राघव चढ्डा ने कहा कि ‘कैसे मोदी सरकार की तरफ़ से आम आदमी पार्टी के ख़िलाफ़ षडयंत्र रचे जा रहे हैं उसकी एक बानगी आप के 20 विधायकों को अयोग्य ठहराने के मामले से मिल जाती है।
चुनाव आयोग ने जिस तरह से फ़ैसला दिया है वो अपने आप में देश का अपनी तरह का पहला मामला है जिसमें चुनाव आयोग ने शिकायतकर्ता की शिकायत पर एकतरफ़ा सुनवाई की और मामले में जिन पर आरोप लगाया गया था उन्हें उनका पक्ष रखने का मौका तक नहीं दिया गया। विधायकों ने अक्तूबर 2017 और नवम्बर 2017 में आयोग को बाकायदा लिखित में चिठ्ठी देकर सुनवाई में शामिल होकर अपना पक्ष रखने की अपील की थी लेकिन विधायकों को नहीं बुलाया गया।
नव-नियुक्त मुख्य चुनाव आयुक्त ओ पी रावत ने यह स्वीकार कर लिया है कि चुनाव आयोग की तरफ़ से आम आदमी पार्टी के विधायकों को अपना पक्ष रखने तक का मौका नहीं दिया गया। 23 जून के अपने ऑर्डर में चुनाव आयोग ने यह कहा था कि विधायकों को सुनवाई के लिए सूचित किया जाएगा लेकिन उसके बाद कभी विधायकों को बुलाया ही नहीं गया।
यह बड़ा हैरान करने वाला है कि जिन ओ पी रावत ने अपनी बीजेपी से नज़दीकियों के चलते आम आदमी पार्टी के विधायकों के इस मामले से अपने आप को दूर कर लिया था वो आखिरी छह महीने में फिर से इस मामले में शामिल हुए और आयोग की रिपोर्ट में उन्होंने भी हस्ताक्षर कर दिए, ऐसा क्यों हुआ? इसका कारण समझ से परे है।
आप विधायकों को अयोग्य ठहराने वाली रिपोर्ट में नसीम ज़ैदी के बाद मुख्य चुनाव आयुक्त बने सुनील अरोड़ा के हस्ताक्षर भी मौजूद है जिन्होंने विधायकों की इस फ़ाइल को कभी देखा भी नहीं और वो इस मामले से पूरी तरह से अनभिज्ञ रहे। ऐसा कैसे हो गया कि सुनील अरोड़ा ने भी उस रिपोर्ट पर हस्ताक्षर कर दिए? ये भी समझ नहीं आ रहा है।
आम आदमी पार्टी इस मामले में कोर्ट का रुख करेगी, आम आदमी पार्टी को भारत की न्यायिक व्यवस्था पर पूरा भरोसा है और हमें उम्मीद है कि हमें न्यायालय से राहत मिलेगी।
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