सुना है कि केन्द्र सरकार नोटबन्दी की सालगिरह पर जश्न मना रही है। और जश्न भी काले धन पर विजय प्राप्त करने का। सभी को याद होगा कि जब नोटबन्दी की गई थी तो 500 और 1000 रुपए के नोट की राशि भारतीय बाज़ार में 14.5 लाख करोड आंकी गई थी और कहा गया था कि 3 से 4 लाख करोड़ काला धन पकड़ा जाएगा। ये सब बातें पहले के बयानों की तरह जुमला ही साबित हुई। जितना धन हज़ार और पांच सौ के नोट में भारतीय बाज़ार में था वो सारा बैंकों में वापस आ गया है, बल्कि उससे कहीं ज्यादा ही आया है। मतलब जिस काले धन की बात मोदी जी ने की थी वो काला धन खराब नहीं हुआ बल्कि वो सारा काला धन नोटबंदी की वजह से सफ़ेद हो गया और साथ ही नकली नोट भी बैंक में जमा करा दिए गए हैं जिन्हें अब देश की अर्थव्यवस्था भुगतेगी।
ग्रहणियों द्वारा बचाए गए कुछ हज़ार रुपए, मजदूरों-किसानों, रिक्शेवालों की बचत को बैंको की लाइन में खड़े करके जमा करवाते हुए, पूरी अर्थव्यवस्था की बैंड बजाकर अपनी पीठ थपथपाते हुए सभी मजबूरों को भ्रष्टाचारी कहने का जश्न मनाने की योजना अब देश की मोदी सरकार बना रही है।
150 से ज्यादा लोग लाइन में खड़े होकर मर गए, न जाने कितनों के इलाज में परेशानी आई, कितनों के कारोबार बंद हो गए, न जाने कितनों की नौकरियां चली गई, इन सभी का जश्न मनाने की तैयारी केंद्र सरकार कर रही है। बहुत से लोगों के पास पुराने नोट अभी भी हैं। जिन लोगों को रिजर्व बैंक के बाहर लाठियों से पिटवाया, उन मजबूर लोगों का क्या कुसूर था?
नोटबन्दी से हासिल क्या हुआ ?
- क्या कालाधन कम हुआ?
- क्या आतंकवाद कम हुआ?
- क्या नक्सलवाद कम हुआ?
- क्या भ्रष्टाचार कम हुआ?
नोटबन्दी से उजागर क्या हुआ?
- वित्तमंत्री को अर्थव्यवस्था की समझ नहीं है।
- देशवासियों को हमेशा जुमलों देकर और राष्ट्रवाद के नाम पर खुराक देकर बेवकूफ़ बनाने की कोशिश की गई
- गलती तो हुई है और सारी दुनिया मान भी रही है, लेकिन केन्द्र सरकार अभी भी गुमराह कर रही है।
- जनता की परेशानी से केन्द्र सरकार को कोई सरोकार नहीं है।
- लाखो-करोड़ का व्यापार का डूब चुका है।
- लाखों लोग बेरोजगार हो गए।
- बैंकों मे नोटबन्दी के नाम पर नई तरह की दलाली शुरु हो गई।
- रिजर्व बैंक महाघाटे में चला गया।
केन्द्र सरकार इन परेशानियों से मुंह फेर कर कितना भी जश्न मनाने की घोषणा कर ले, लेकिन झूठ को कितना भी सजा लो वह झूठ ही रहता है।
जिस भी जन प्रतिनिधि ने नोटबन्दी का विरोध किया, भाजपा और मीडिया ने साथ मिलकर उसको देशद्रोही घोषित कर दिया, उनका उपहास किया गया और उनको ही भ्रष्टाचारी बता दिया गया।
भाजपा जनता की आवाज को दबाती आई है, मुद्दों से भटकाती आई है ओर कोई भी जनप्रतिनिधि जनता के हित की बात करे या जनता के कष्ट को सामने लेकर आए तो यह सरकार उसे बर्दाश्त नही कर पाती।
पिछले साल जो बातें दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने देश भर में जनसभाएं करके लोगों से नोटबन्दी के बारे ने कही थी वह आज सच साबित हो गई हैं। सारी दुनिया के सभी विशेषज्ञ नोटबन्दी को एक बड़ी विफलता घोषित कर चुके हैं। कुछ सवाल और हैं जो नोटबन्दी के समय से आज तक ज़हन में बने हुए हैं-
- नए 2000 के नोट के साथ भाजपा के लोगों के फोटो नोटबन्दी से पहले कैसे आए?
- जितने भी लोग सम्भावना से कहीं ज्यादा नए नोटों के साथ पकड़े गए, गड्डियों के साथ पकड़े गए वह भाजपा के ही क्यों थे, उनपर क्या कार्यवाही हुई और इतने नोट उनके पास कैसे आए?
- जिस भाजपा नेता के घर से नोट छापने की मशीन मिली उसका क्या हुआ?
- उस डेलारु कम्पनी को भारत के नोट छापने के लिए काग़ज़ देने का ठेका क्यों दिया गया जिस पर पाकिस्तानी एजेंसी आईएसआई का साथ देने का आरोप है?
और भी कई सवाल हैं लेकिन लगता है कि इनका उत्तर इस केन्द्र सरकार से तो नहीं मिलने वाला। अब देश की जनता को एकसाथ खड़े होकर आवाज़ उठानी पड़ेगी, तभी इन निकम्मे, जुमलेबाज़ शासकों के कान खुलेंगे। आम आदमी पार्टी जनता की अपनी पार्टी है, हमेशा जनता की आवाज उठाती रहेगी। लेकिन आज देश की यह जरुरत है कि जनता भी अपनी आवाज उठाए, घर-घर से आवाज निकलकर आए और धोखेबाजों को उनके किए की सज़ा मिले।
Written by: Nitin Tyagi
लेखक दिल्ली की लक्ष्मीनगर विधानसभा सीट से आम आदमी पार्टी के विधायक हैं
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