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आम आदमी पार्टी के नेता विवेक यादव की कलम से …

आखिर गुजरात में विधानसभा के चुनाव की तारीखों का एलान हो ही गया। इस चुनाव में भाजपा शासित केंद्र सरकार की साख भी दांव पर लगी है, या यूं कहें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की साथ अपने गृह राज्य में दांव लगी है। राजनैतिक विश्लेषकों की राय में इन चुनाव के परिणामों को केंद्र सरकार के द्वारा किए कार्यों की समीक्षा माना जाएगा और अगर गुजरात में भाजपा की हार होती है तो निश्चित रूप से उसे केंद्र सरकार की विफलता माना जाएगा जैसा कि विपक्ष का दावा है कि मोदी सरकार के दो सबसे बड़े विवादास्पद निर्णयों नोटबंदी और GST को लागू करने से देश में बेरोजगारी बढ़ी है, व्यापारी तबाह हो गए हैं, जैसा कि दिखाई भी दे रहा है। इस स्थिति में भाजपा किसी भी कीमत पर गुजरात में अपने आपको कमजोर नहीं दिखाना चाहेगी चाहे उसे इसके लिए कुछ भी करना पड़े। हालांकि भारत में चुनाव स्वतंत्र और संवैधानिक संस्था यानि चुनाव आयोग की देख रेख में होते है जिसकी निष्पक्षता पर सवाल उठाने वालों को भाजपा अब कठघरे में खड़ा कर देती है, ये बात अलग है कि जब वो विपक्ष में थे तब उन्होंने भी चुनाव योग की कार्यप्रणाली पर संदेह व्यक्त किया था।

अब सवाल यह है कि जब चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद विपक्ष की वोटिंग मशीन के साथ VVPAT को जोड़ने की मांग मान ली है तो फिर क्या सारे संदेह खत्म हो जाने चाहिए ?

अधूरी बात समझ कर तो यही कहेंगे कि अब संदेह की कोई ठोस वजह तो रह नहीं जाती और अब गुजरात के चुनाव परिणामों पर किसी तरह का कोई संदेह किसी को करना भी नहीं चाहिए। मगर हकीकत तो कुछ और ही है, जिससे संदेह और भी बढ़ जाता है। जब VVPAT से निकलने वाली पर्चियों की गिनती ही नहीं होगी तो उसे लगाने का फायदा आखिर है क्या? क्या कहीं ये पूरी कवायद विपक्ष को खामोश करने के लिए तो नहीं है? कहीं ऐसा तो नहीं है कि बाद में देश की जनता को समझाने की कोशिश की जाएगी कि देखिये सारा देश तो भाजपा के साथ है, उसकी नीतियों का समर्थन गुजरात की जनता ने भी किया है और विपक्ष अपनी नाकामी छुपाने के लिए चुनाव की निष्पक्षता पर ही सवाल उठा रहा है। अब तो चुनाव उनकी मांग के मुताबिक यानि VVPAT के साथ कराए गए हैं, लेकिन संदेह की असली वजह तो ये है की रेंडम काउन्टिंग को आखिर किस डर से खारिज किया जा रहा है? और जब काउन्टिंग करानी ही नहीं है तो VVPAT मशीन जोड़ने का मतलब ही क्या है?

मेरे मन में एक संदेह और भी है कि जिस तरह से धीरे-धीरे सर्वे ऐजेंसियां देश में एक माहौल बना रही हैं वो भी एक बड़े षड्यंत्र की और इशारा करता है, उनका सर्वे कहता है कि नोटबंदी और GST को लेकर गुजरात के लोगों में बड़ा गुस्सा है, बेरोजगारी युवाओं का सबसे बड़ा मुद्दा है लेकिन फिर भी सरकार भाजपा की ही बनने जा रही है, और वो भी पहले से ज्यादा बहुत लेकर। जब सारा तबका नाराज है तो आखिर भाजपा को वोट कर कौन रहा है? ये नाराज़गी चूंकि इतनी ज्यादा है कि सर्वे ऐजेंसियां भी जानती हैं कि इसे छिपाने से उनकी बची-खुची विश्वसनीयता भी ख़त्म हो जाएगी, तो वो केवल एक भ्रम पैदा कर रहे हैं सरकार के पक्ष में। बेहतर होगा कि चुनाव आयोग अपनी निष्पक्षता बनाए रखे और और कुछ वोटिंग मशीनों के VVPAT से निकली पर्चियों की गिनती भी कराए जिससे गुजरात के चुनावो के सही नतीजे जनता के सामने आ सकें और लोकतंत्र में लोगों का विश्वास मज़बूत हो।

लेखक विवेक यादव के इस ब्लॉग समेत अन्य लेख पढ़ने के लिए आप नीचे दिए गए लिंक का इस्तेमाल कर सकते हैं-

http://vivekyadavaap.blogspot.in/2017/10/vvpat.html

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sudhir

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