हम यह जानना चाहते हैं आखिर क्या वजह है कि भाजपा EVM के बिना चुनाव नहीं करवाना चाहती : सौरभ भारद्वाज
यह हमारे लिए बड़े ही हर्ष की बात है कि आम आदमी पार्टी ने जो मुद्दा सबसे पहले उठाया था, आज देश की लगभग सभी पार्टियाँ इस बात को मान रही है कि देश में चुनाव EVM मशीन से नहीं होना चाहिए : सौरभ भरद्वाज
वीडियो के माध्यम से एक बयान जारी करते हुए आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभा भारद्वाज ने कहा कि केवल भाजपा को छोड़कर आज देश की लगभग सभी पार्टियों का मानना है कि EVM मशीन में गड़बड़ी होती है, और देश में होने वाले सभी चुनाव या तो EVM के बिना हों, या फिर EVM मशीन के साथ VVPAT मशीन का भी उपयोग किया जाना चाहिये, ताकि चुनाव की निष्पक्षता बनी रहे। बाद में VVPAT की स्लिप का 20 से 25% हिस्से की भी गिनती होनी चाहिए।
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि कल लन्दन में हुई एक प्रेस वार्ता में एक हैकर द्वारा ये दावा करने के बाद कि EVM मशीन को हैक किया जा सकता है, ये मुद्दा दौबारा से चर्चा में आ गया है। आप सभी को याद होगा की आम आदमी पार्टी ने विधान सभा के अन्दर एक EVM जैसी मशीन को टेम्पर करके दिखाया था, और पूरे देश ने देखा था कि EVM मशीन में किस तरह से छेड़छाड़ हो सकती है। आज देश की सभी पार्टियाँ चाहती हैं कि चुनाव में EVM मशीन का इस्तेमाल बंद किया जाए, तो भाजपा को इससे गुरेज़ क्या है?
भाजपा को घेरते हुए सौरभ भारद्वाज ने कहा कि एक बड़ी ही अचंभित करने वाली बात यह है कि जब कभी भी EVM मशीन शक के घेरे में आई, या जब कभी भी EVM मशीन की खराबी के कारण चुनाव आयोग पर सवाल उठे तो भाजपा हमेशा चुनाव आयोग का बचाव करती नज़र आई। आखिर ऐसी क्या वजह है कि भाजपा हमेशा EVM मशीन और चुनाव आयोग का बचाव करती है। भाजपा क्यूँ नहीं चाहती कि EVM मशीन को चुनाव प्रक्रिया से हटाया जाए।
यह बहुत ही गम्भीर बात है कि कोई भी एक राजनीतिक पार्टी मशीन में गड़बड़ी करके चुनाव को प्रभावित कर सकती है। अगर ऐसा है तो फिर लोकतंत्र का कोई अर्थ नहीं रह जाता। अगर चुनाव ऐसे ही जीता जाना है तो फिर क्या फर्क पड़ता है कि कौनसी पार्टी अच्छा काम कर रही है और कौनसी पार्टी खराब काम कर रही है, कौन भ्रष्टाचार कर रहा है और कौन नहीं कर रहा है, फिर तो जिसके पास EVM मशीन का कब्ज़ा है वो चुनाव जीतता जाएगा। अगर राजनीतिक पार्टियाँ इस प्रकार से EVM मशीन में गड़बड़ी करके चुनाव जीतने लगेंगी तो फिर हमारा वोट देने का कोई अर्थ नहीं रह जाता, देश के मीडिया और अखबारों का सर्वे करना, आंकलन करना, अख़बारों का ख़बरें छापना, ये सब बाते बेमानी हो जाती हैं।
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