दिल्ली विधानसभा में शुक्रवार को सरकारी अस्पतालों, मोहल्ला क्लीनिकों और डिस्पेंसरी में दवाइयों की कमी और लैब जांच न होने का मुद्दा उठा। सदस्यों ने सदन को बताया कि दवाइयों और लैब जांच न होने की वजह से दिल्ली की गरीब जनता को खासी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। इस मुद्दे का तत्काल समाधान निकालने को लेकर एक संकल्प पत्र पेश किया गया। विधानसभा ने इसे ध्वनि मत से पास कर मुख्य सचिव को एक सप्ताह के अंदर दवाइयों की कमी और लैब जांच न होने की समस्या का समाधान करने का निर्देश दिया। साथ ही इस दौरान उठाए गए कदमों की रिपोर्ट स्वास्थ्य मंत्री को सौंपने को कहा है। इस मुद्दे पर 22 मार्च को सदन में चर्चा की जाएगी। स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज का कहना है कि एक टेंडर खत्म होने से पहले ही दूसरा टेंडर हो जाना चाहिए, लेकिन अफसर ऐसा नहीं कर रहे हैं। मौजूदा टेंडर भी मार्च में खत्म हो जाएगा, लेकिन अभी तक दवाइयों की आपूर्ति नहीं हुई है। इसके बाद भी केंद्र सरकार दोषी अफसरों पर कार्रवाई नहीं कर रही है।
संकल्प पत्र पर चर्चा के दौरान स्वास्थ्य मंत्री सौरभ भारद्वाज ने कहा कि गरीब तबके के लोगों को इलाज के लिए सरकारी अस्पतालों की दवाईंया ही इकलौता माध्यम हैं। आज दिल्ली के मोहल्ला क्लीनिक, अस्पतालों और डिस्पेंसरी में दवाईयों की कमी और लेबोरेटरी टेस्ट न होने से यह गरीब तबका काफी परेशान है। दवाईयों की आपूर्ति के लिए साधारण प्रक्रिया है। दिल्ली सरकार के लिए सेंट्रल प्रोक्योरमेंट एजेंसी (सीपीए) दवाईयों की खरीद और वितरण करता है। इसके लिए बकायदा हर साल टेंडर निकाले जाते हैं। लोगों के लिए दवाईयों की कमी न हो, इसके लिए एक टेंडर के खत्म होने से पहले ही दूसरा टेंडर निकाला जाता है। यह प्रक्रिया लगातार इसी तरह चलते रहती है।
उन्होंने कहा कि दवाईयों के लिए 21 दिसंबर 2022 को टेंडर निकाला गया। लेकिन अफसर पूरे साल उस टेंडर का टेक्निकल इवेल्यूशन करते रहे। एक साल बीतने पर वह टेंडर एक्सपायर हो गया। वहीं, वर्तमान का टेंडर भी इसी साल मार्च में एक्सपायर हो रहा है। लेकिन दवाईयों की आपूर्ति नहीं हुई। इसी वजह से दिल्ली सरकार के अस्पतालों, डिस्पेंसरी और मोहल्ली क्लीनिक में दवाईयां खत्म हो रही हैं। केंद्र सरकार ने तो दिल्ली सरकार की सारी शक्तियां छीनकर एलजी को दे दी हैं। तो दवाईयों की आपूर्ति बाधित करने वाले स्वास्थ्य सचिव, डीजीएचएस, सीपीए के अफसरों पर कार्रवाई क्यों नहीं हो रही है। ऐसे अफसरों पर क्रिमिनल एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज करा कर सजा दिलानी चाहिए।
सौरभ भारद्वाज ने कहा कि सीपीए के अलावा दवा खरीद का एक और प्रावधान है। दिल्ली सरकार स्थानीय स्तर पर दवा की खरीद कर सकती है। इस प्रक्रिया को भी रोकने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आदेश निकाल कर कहा कि ये संभव नहीं है। इतना ही नहीं, लैब टेस्ट को रोकने की कोशिश की जा रही है। मोहल्ला क्लीनिक में टेस्ट करने वाली कंपनियों की पिछले एक साल से पेमेंट नहीं हुई है। मार्च के बाद ये कंपनियां टेस्ट करने को तैयार नहीं हैं। इसके बावजूद टेस्ट के लिए अभी तक टेंडर नहीं हुआ है।
विधायक मदन लाल ने कहा कि यह समस्या पिछले एक साल से बनी हुई है। मोहल्ला क्लीनिक और अस्पतालों में आम बीमारियों के लिए दवा नहीं है। दिल्ली सरकार बजट का 14 फीसदी हेल्थ सेक्टर में खर्च करती है। इसके बावजूद जरूरी दवाईयां मुहैया नहीं हो रही हैं। इसके लिए जो अफसर जिम्मेदार हैं, उनको उत्तरदायित्व सौंपा जाना चाहिए। विधायक ऋतुराज गोविंद ने कहा कि मोहल्ला क्लीनिक केजरीवाल सरकार की वह योजना है, जिसमें गरीब से गरीब लोग इलाज कराने के लिए आते हैं। जो लोग अपना इलाज महंगे निजी अस्पतालों में नहीं करा सकते हैं, वह यहां से दवाई लेते हैं। लेकिन चुनाव आते ही गंदी राजनीति के तहत दवाई समेत हर उस चीज को रोकने के कोशिश हो रही है, जिससे किसी गरीब का भला हो।
दिल्ली विधानसभा में मुख्य सचेतक व विधायक दिलीप पांडेय ने संकल्प पत्र पेश किया। उन्होंने संकल्प पत्र में कहा कि सदन गंभीर चिंता व्यक्त करता है कि दिल्ली सरकार के विभिन्न मोहल्ला क्लीनिक, डिस्पेंसरी और अस्पताल जरूरी मुफ्त दवाई और उपयोग सामग्री और मुफ्त लेबोरेटरी टेस्ट की भारी कमी का सामना कर रहे हैं। दिल्ली के गरीब लोग सरकारी मोहल्ला क्लीनिक, डिस्पेंसरी और अस्पतालों पर पूरी तरह निर्भर हैं। क्योंकि वह प्राइवेट अस्पतालों के महंगे इलाज का खर्च वहन नहीं कर सकते हैं। यह बहुत चिंता का विषय है कि मुफ्त दवाइयों की कमी और लेबोरेटरी टेस्ट न होने से गरीब लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। इससे लोगों के हताहत होने का खतरा है। अभी-अभी महामारी से उभरे शहर में दहशत फैल सकती है।
संकल्प पत्र में मुख्य बातें
1- दिल्ली सरकार के मोहल्ला क्लीनिक, अस्पतालों और डिस्पेंसरी में दवाइयां/ अन्य सामग्री, लेबोरेटरी टेस्ट और अन्य सुविधाओं की कमी की समस्याओं को युद्ध स्तर पर तुरंत हल किया जाए।
2- उपरोक्त कमियों को दूर करने के लिए दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव पूर्ण रूप से उत्तरदायी होंगे।
3- मुख्य सचिव एक सप्ताह के भीतर इन कमियों को दूर करें और दिल्ली सरकार के स्वास्थ्य मंत्री को दैनिक रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
4- इस मामले को लेकर शुक्रवार यानी कि 22 मार्च 2024 को सुबह 11 बजे दिल्ली विधानसभा की बैठक आयोजित की जाएगी, जिसमें मुख्य सचिव व्यक्तिगत रूप से स्वास्थ्य मंत्री के माध्यम से इस संबंध में विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे।