आम आदमी पार्टी (आप) ‘‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’’ (ओएनओई) के विचार का सख्त विरोध करती है। क्योंकि यह देश के लोकतंत्र, संविधान की बुनियादी और संघीय ढांचे के लिए खतरा है। ‘‘आप’’ ने गुरुवार को ओएनओई पर गठित उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) को बताया कि लोकसभा और सभी राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव का यह सुझाव कैसे देश के लोकतंत्र, संवैधानिक सिद्धांतों, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव के लिए गंभीर खतरा है।
इस संबंध में ‘‘आप’’ के राष्ट्रीय सचिव पंकज गुप्ता और वरिष्ठ नेता जैस्मीन शाह का एक प्रतिनिधि मंडल ने भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविन्द की अध्यक्षता में वन नेशन-वन इलेक्शन के लिए बनी उच्च स्तरीय समिति से मुलाकात की।
‘‘आप’’ के राष्ट्रीय सचिव पंकज गुप्ता ने कहा कि पूरे देश में एक साथ मतदान कराना मतदाता के प्रति लोकतांत्रिक जवाबदेही को कमजोर करता है और सरकारों को चुनाव से पहले हर पांच साल में केवल एक बार काम करने के लिए प्रोत्साहित करेगा। उन्होंने यह भी कहा कि चुनाव का मौजूदा स्वरूप रोजमर्रा के शासन में कोई बाधा पैदा नहीं करता है। उन्होंने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि किसी भी चुनाव से पहले लगाई गई आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) केवल किसी नई योजनाओं की घोषणा करने से रोकती है। इसके अलावा सरकार के पहले से चल रहे कार्यक्रम निर्बाध रूप से चलते रहते हैं। उन्होंने आगे कहा कि एमसीसी के किसी भी कठिनाइयों का सामना चुनाव आयोग के स्तर पर किया जा सकता है। इसे एमसीसी के प्रावधानों को स्पष्ट करके और राज्यों में होने वाले चुनावों के चरणों की संख्या को कम करके भी हासिल किया जा सकता है।
पंकज गुप्ता ने इस तथ्य पर बल दिया कि चुनाव लोगों को केंद्र और राज्य सरकारों को जवाबदेह ठहराने का एक अवसर देता है, ओएनओई नागरिकों को इस अवसर से वंचित कर देगा। उन्होंने ओएनओई के वित्तीय पहलू पर प्रकाश डालते हुए कहा कि मौजूदा स्वरूप में चुनावों पर कुल खर्च बहुत कम है, जो केंद्र सरकार के वार्षिक बजट का केवल 0.1 फीसद है। इसलिए ओएनओई के जरिए मामूली खर्च को कम करने के लिए संवैधानिक सिंद्धांतों की कुर्बानी देकर सही नहीं है।
‘‘आप’’ नेता जस्मिन शाह ने एचएलसी को बताया कि ओएनओई संसदीय प्रणाली, संघीय ढांचे, लोकतंत्र और स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों का उल्लंघन करता है। उन्होंने ओएनओई की तकनीकी पहलुओं पर ध्यान दिलाते हुए एचएलसी को बताया किया कि ओएनओई में चुनावों के बाद त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति में या सरकार के विश्वास खोने की स्थिति में कोई समाधान नहीं दिया गया है।
‘‘आप’’ के वरिष्ठ नेता जस्मिन शाह ने विशेष रूप से दो पहलुओं की ओर इशारा किया। पहला, ओएनओई त्रिशंकु विधानसभाओं के लिए प्रस्तावित समाधान के लिए दल-बदल विरोधी कानूनों को कमजोर करेगा। बड़े पैमाने पर खरीद-फरोख्त और सबसे बड़ी पार्टी द्वारा धन-बाहुबल के दुरुपयोग को प्रोत्साहित करेगा। दूसरा, अगर कोई सरकार विधानसभा का विश्वास खो देती है तो भी यह बिना बहुमत साबित किए सरकार को काम करने की अनुमति देता है। इसके अलावा उन्होंने एचएलसी को सचेत किया कि ओएनओई राज्य के चुनाव एजेंडे को राष्ट्रीय चुनाव एजेंडे से आगे ले जाएगा। उन्होंने कहा कि संविधान और लोकतंत्र के सिद्धांतों को कुछ वित्तीय लाभ और प्रशासनिक सुविधा के लिए बलिदान नहीं किया जा सकता है।
इस दौरान ‘‘आप’’ प्रतिनिधि मंडल ने वर्तमान परामर्श की त्रुटि की ओर इशारा किया जो किसी नीतिगत मसौदे के बिना अस्पष्ट विचार पर किया जा रहा है। उन्होंने समिति से यह भी अनुरोध किया कि यदि समिति इसकी सिफारिश करती है, तो भविष्य में एक साथ चुनाव कराने के लिए एक ठोस मसौदा योजना के साथ एक और परामर्श बैठक आयोजित किया जाए।
‘‘आप’’ नेताओं के प्रतिनिधिमंडल का स्वागत करते हुए एचएलसी के अध्यक्ष और पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उल्लेख किया कि आम आदमी पार्टी की दो राज्यों में सरकार है और वह इस परामर्श की प्रक्रिया में एक अहम हितधारक है। समिति ने धैर्यपूर्वक ‘‘आप’’ के विचारों को सुना और ‘‘आप’’ के अनुरोध को स्वीकार किया कि अगर समिति इसकी सिफारिश करती है कि भविष्य में एक साथ चुनाव को लेकर एक ठोस मसौदा योजना के साथ एक बार और परामर्श किया जाए तो इस पर विचार किया जाएगा।
ओएनओई की संवैधानिकता के बारे में कुछ गंभीर मुद्दों पर राय व्यक्त करते हुए ‘‘आप’’ ने कहा है कि देशभर में सभी चुनाव एक साथ कराने से संविधान के मूल ढांचे को हानि पहुंचेगी। सुप्रीम कोर्ट ने भी माना है कि संविधान की मूल ढांचे को कमजोर नहीं किया जा सकता है, जबकि ओएनओई का विचार और तंत्र मौलिक रूप से संविधान के बुनियादी ढांचे को नुकसान पहुंचाता है।