आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता,लेखक और समाजसेवक दिलीप पांडे की कलम से …
रेयान इंटरनेशनल स्कूल में जो सब हुआ, उसे सुनकर मेरे अंदर वही उथल पुथल हुई जो हर एक पिता में मन में हुई होगी। मैंने अपने दोनो बच्चों को गौर से देखा और उनकी चिंता में मानो घुल सा गया। प्रद्युम्न के माता पिता किस हाल में होंगे, कल्पना करना भी मुश्किल है। आखिर कैसा समाज बना दिया है हमने? किस तरह के समाज में रह रहे हैं हम लोग। बच्चे के माथे पर सहलाकर जब हम उन्हें सुबह स्कूल के लिए जगाते हैं, तो क्या सोचते हैं? मैं सोचता हूँ कि घर के सुरक्षा कवच से निकालकर मैं बच्चों को दूसरे परिवेश में भेज रहा हूँ। बाहरी दुनिया में जीने का सलीका बच्चे वहीं तो सीख पाते हैं। खाना, पीना, खेलना, कूदना, हंसना रोना सब उसी स्कूल की छत के नीचे तो सीखते हैं। बच्चे जिस वक़्त स्कूल में होते हैं, माँ बाप के मन मे कभी भय नहीं होता। हमें लगता है कि वो इस दुनिया की सबसे सुरक्षित जगह है। तभी तो स्कूल के घंटे खत्म होने से कुछ मिनट पहले ही हम स्कूल के दरवाज़े पर टकटकी लगाए खड़े होते हैं।
लेकिन दुखद है कि अब वो ज़माना नहीं रहा। अब हमें किसी भी पल आश्वस्त नहीं रहना है। जिन बच्चों की खातिर माँ बाप जीते हैं, उनके ऊपर बाहर अंदर की दुनिया घात लगाए बैठी है। एक मासूम सा 7 साल का बच्चा किस दर्द से गुज़रा होगा, इस नफ़रत की दुनिया को छोड़ने से पहले, हमारी कल्पना से बाहर है ये सोचना। उस मासूम के माँ बाप इसी दर्द से जीवन भर गुज़रेंगे। लेकिन रोज़ रोज़ होती इन घटनाओं से अब सबक लेने की बारी और ज़िम्मेदारी हमारी है। हमारे बच्चों को इन आदमखोर प्रवृति से बचाने का ज़िम्मा हमारे ऊपर है।
बच्चों को सामने बैठाइए। उनका हाथ अपने हाथ में लीजिये। अब उनकी आंखों में आंखें डालकर कहिये, “ऐसे छूना अच्छा होता है और वैसे छूना पाप। इस दुनिया की किसी भी मुश्किल से आपको बचाने के लिए आपके माँ बाप आपके साथ हैं। आपको छू कर प्यार करने का हक सिर्फ हमारे पास है, लेकिन वो भी सिर्फ इतना जितना कि अच्छा हो। हमसे आपको हर बात शेयर करनी है, भले वो कहने में कितनी भी हिचक हो, शर्म आये,कितना भी डर लगे, घबराहट हो। अगर कभी ऐसा लगता है कि कोई काम आपसे गलत हो गया, तो उसे ठीक करने की पूरी ज़िम्मेदारी हमारी है। आपको कोई डराये, धमकाए, हमसे बातें छिपाने के लिए कहे, तब उस बात को हर हाल में सबसे पहले हमें बताना है। चाचा, मामा, फूफा, मौसाजी कोई भी आपको उस तरह छूकर प्यार नहीं कर सकते, जैसा छूना गलत है। यहां तक कि पापा मम्मी भी आपको उस तरह छू नहीं सकते, जैसे आपको अच्छा नहीं लगता”।
ये एक बहुत छोटा सा पहला कदम है। इसके बाद हर रोज़ अपने बच्चे की चाल ढाल, व्यवहार, हंसी, उदासी सब देखिए। उसमे लेशमात्र भी फर्क दिखे, तो बच्चे को अकेले में ले जाकर पूछिये। तब भी बात न बने, तो उसके मन की बात को मनोवैज्ञानिक ढंग से भांपिये। इसके बाद भी कमी रहे, तो बाल मनोवैज्ञानिक का रुख कीजिये। पर अपने मासूम बच्चे को समय ज़रूर दीजिये, वो मोहब्बत का, आपकी परवाह का हक़दार है। आप उसकी एकमात्र ताक़त हैं। आप सभी के बच्चों को ढेर सारा प्यार, आशीर्वाद। ईश्वर हर मुसीबत से बचाएं उन्हें।
– एक पिता
(दिलीप पांडेय)
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