- मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में एक और घोटाला, पैसे लेकर दी जाती है मेडिकल कॉलेज को क्लीन चिट
मोदी सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में एक और घोटाला सामने आया है। इस बार बैन हुए मेडिकल कॉलेज को मोटी रकम लेकर क्लीन चिट देने का मामला सामने आया है जिसमें एक बड़े पत्रकार, स्वास्थ्य मंत्रालय के बड़े अफ़सरों की मिलीभगत और संभवत:सरकार में बैठे बीजेपी के बड़े नेता की शह पर ये पूरा गोरखधंधा किया जा रहा था। सीबीआई इस मामले की जांच कर रही है लेकिन ऐसा प्रतीत होता है कि सीबीआई इस मामले की सच्चाई जानने कि बजाए इसे दबाना चाहती है।
पार्टी कार्यालय में आयोजित हुई प्रेस कॉंफ्रेस में बोलते हुए आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता और राष्ट्रीय प्रवक्ता आशुतोष ने कहा कि‘बीजेपी की तरफ़ से यह झूठ फैलाया जा रहा है कि उनकी सरकार में कोई घोटाला नहीं हुआ है जबकि सच्चाई यह है कि मोदी जी की सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय घपलों-घोटालों का गढ़ बना हुआ है। कुछ दिन पहले 7 हज़ार का करोड़ का स्कैम सामने आता है तो अब एक और मामला सामने आ गया है।‘
केंद्र सरकार के स्वास्थ्य विभाग में कुछ सनसनीखेज मामले सामने आए हैं, अब उन्हें दबाने का प्रयास किया जा रहा है क्योंकि इसमें भाजपा के बड़े नेता के हाथ होने के संकेत मिल रहे है। देश में कुछ दिन पहले सरकार ने कुछ मेडिकल कॉलेज की मान्यता को इसलिए रद्ध किया था कि उनके यहां ना तो सुविधाएं पर्याप्त थीं और ना ही मानदंडों पर ये कॉलेज खरे उतरे थे, लेकिन केंद्र सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय में इन कॉलेजिज़ को मोटी रकम के बदले क्लीन चिट देने का धंधा ज़ोरों से चल रहा था और ज़ाहिर तौर पर यह सरकार में बैठे कुछ उच्चपदस्थ लोगों की शह पर ही फल-फूल रहा था।
‘दरअसल ये मामला हरियाणा के झज्जर ज़िले में स्थित एक मेडिकल कॉलेज का है जिसको बैन किया गया था, उस कॉलेज के दोनो मालिकों ने नोएडा निवासी दो लोगों की मदद से अपने कॉलेज को क्लीन चिट दिलवाने का पूरा जुगाड़ कर लिया था जिसकी एवज में तकरीबन 10 करोड़ रुपए का लेन-देन होना था। इस डील को कराने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय में बड़े उच्च स्तर पर सौदा कराने का ज़िम्मा एक पत्रकार ने लिया था जिन्होंने हाल ही में एक मीडिया संस्थान से इस्तीफ़ा भी दिया है।‘
‘सीबीआई ने इस मामले में एक शिकायत पर उस कॉलेज के दोनो मालिकों और नोएडा के उन दोनों प्राइवेट लोगों के ख़िलाफ़ मामला दर्ज़ किया था, मामले में इन चार लोगों को नामज़द किया गया था जबकि कुछ अज्ञात लोगों का ज़िक्र भी एफ़आईआर में था। लेकिन जब इस मामले के तार स्वास्थ्य मंत्रालय से जुड़ते हुए दिखे तो उसके बाद सीबीआई भी कुछ बैकफ़ुट पर जाती हुई नज़र आई। सीबीआई ने तकरीबन 5 से 6 दिन तक इस मामले की एफ़आईआर तक वेबसाइट पर अपलोड नहीं की थी जबकि सुप्रीम कोर्ट का पिछले साल का आदेश है कि सीबीआई को उसी दिन की शाम को अपनी वेबसाइट पर उक्त मामले की एफ़आईआर दर्ज़ करनी होगी जिस मामले को वो रजिस्टर करती है। ऐसी क्या वजह है कि सीबीआई इस मामले पर अब इतनी नरमी बरत रही है? कहीं ऐसा तो नहीं कि इस मामले में केंद्र सरकार में बैठे बीजेपी के किसी बड़े नेता की भूमिका है और सीबीआई अब मजबूर हो गई है?’
‘सीबीआई द्वारा दर्ज़ किए गए इस मेडिकल कॉलेज के मामले में सरकार के निर्णय को बदलने की डील फ़िक्स की जा रही थी।नोएडा के सेक्टर 44 में 10 करोड़ रुपए की डील हुई, 2 करोड़ रुपए इस काम के लिए दे दिए गए थे। जब सीबीआई ने इस डील को लेकर फ़ोन पर हो रही बातों को ट्रेस किया तो इस मामले के तार कई लोगों तक पहुंचे, मामला गाजियाबाद की सीबीआई कोर्ट में गया तोएक अखबार में छोटी सी खबर लग गई और सीबीआई अधिकारियों के हाथ पांव फूल गए क्योंकि तब तक सीबीआई को यह अहसास हो गया था कि इस मामले में सरकार में बैठे बड़े लोगों की भूमिका भी है और इसीलिए अब सीबीआई के कई अधिकारी मामले को दबाने की कोशिश कर रहे हैं।‘
‘आम आदमी पार्टी का मानना है कि यह डील सरकार और मंत्रालय के बहुत उपर के स्तर पर ही हो सकती है क्योंकि इस काम को कराने के लिए सचिव या मंत्री स्तर तक की अनुमति की ज़रुरत होती है। हम यह जानना चाहते हैं कि क्या मोदी जी या उनके मंत्री जी को इस बात की जानकारी है कि उनकी सरकार में यह सब हो रहा है?अगर उन्हें जानकारी है तो इस संबंध में क्या कार्रवाई की गई है?कहीं ऐसा तो नहीं कि मोदी जी की सरकार के उनके अपने नेता ही इस पूरे गोरखधंधे को चला रहे थे? ऐसे कुछ सवाल आम आदमी पार्टी पूछना चाहती है।‘
1. इस मामले में वे प्राइवेट लोग कौन थे जो नोएडा में बैठकर ये पूरी डील करा रहे थे?
2. विभाग के वरिष्ठ अधिकारी कौन हैं, जिन्हें प्रभावित करके यह काम कराया जा रहा था?
3. स्वास्थ्य मंत्रालय में सरकार के फ़ैसले बदलने का अधिकार किसके पास है, इसका खुलासा होना चाहिए?
4. कितनी मोटी रकम इस काम को करने के लिए दी गई?
5. नोएडा में बैठे उन प्राइवेट लोगों द्वारा जिस क्लोज़ कॉन्टेक्ट का हवाला दिया जा रहा है, क्या वो भाजपा के बड़े नेता का आदमी है,या फिर ये डील वो खुद करा रहे थे?
6. उस पत्रकार का नाम हटाने के लिए क्या सीबीआई पर दबाव बनाया गया था?
7. इस मामले में जब प्राइवेट आदमी का नाम उजागर हुआ, और सीबीआई को पता चला कि ये कितना बड़ा मामला है तो क्या इसी वजह से बाद में उसे छोड़ा गया?
8. सीबीआई की तरफ़ से FIR देर से क्यों अपलोड की गई?
9. देर से एफ़आईआर अपलोड करना, क्या यह सुप्रीम कोर्ट का उलंघन नहीं है?
10. इस मामले से जुड़ी प्रेस रिलीज उसी दिन क्यों नहीं जारी की गई जिस दिन एफ़आईआर दर्ज़ की गई थी?
11. इस मामले में सीबीआई के सीज़र मेमो में क्या-क्या है? कितनी रकम मिली थी?
12. इस डील का पैसा ये लोग किसको पहुंचाने वाले थे?
13. पिछले दिनों एक बड़े पत्रकार ने इस्तीफा दिया, क्या इसके पीछे यही वजह तो नहीं है?
‘आम आदमी पार्टी का यह मानना है कि अगर इस मामले की पूरी ईमानदारी के साथ जांच हुई तो यह हिंदुस्तान का वाटरगेट साबित हो सकता है क्योंकि ऐसा भी हो सकता है कि सरकार में बैठे उच्च पदस्थ लोग भी इस मामले में पर्दे के पीछे के किरदार हों।‘
प्रेस कॉंफ्रेस में पत्रकारों से बात करते हुए पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने कहा कि मोदी सरकार के मंत्रालय में पैसे लेकर बैन हुए मेडिकल कॉलेज को फिर से चलाने की बात हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर कॉलेज बैन किए गए थे क्योंकि इन कॉलेजिज़ के पास संसाधन नहीं थे मेडिकल कॉलेज को चलाने के लिए। मोदी सरकार में मोटी रकम लेकर ऐसे कॉलोजिज़ को क्लीन चिट दी जा रही थी।‘
‘दरअसल मोदी जी झूठा दावा करते हैं कि भाजपा के राज में घोटाला नहीं हो रहा है जबकि सच्चाई यह है कि जेपी नड्डा के राज में स्वास्थ्य विभाग में जमकर फर्जीवाड़ा हो रहा है। CVC संजीव चतुर्वेदी ने जब 7000 करोड़ रुपए का घोटाला उजागर किया तो उन्हीं को ही साइड-लाइन कर दिया गया था। दरअसल मोदी सरकार घोटाला करने वाले अफ़सरों और नेताओं की ढाल का काम कर रही है।‘
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