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  • शीला जी को भी सामने आकर बताना चाहिए उन 5 शक्तियों के बारे में: सौरभ भारद्वाज

प्रेस कॉंफ्रैंस को संबोधित करते हुए आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता सौरभ भारद्वाज ने कहा कि ‘दिल्ली के विषय में अलग-अलग मीडिया हाउस और अलग-अलग लोगों की अलग-अलग राय हैं। लेकिन ये बेहद ज़रुरी है कि दिल्ली की प्रशासनिक व्यवस्था और उसकी वर्तमान पेचीदगियों के बारे में सभी को जानना चाहिए। जब दिल्ली के मुख्यमंत्री श्री अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा के बजट सत्र में उन पांच शक्तियों के बारे में साफ़ तौर पर बताया जो पूर्व की शीला दीक्षित सरकार के पास थीं लेकिन वर्तमान की दिल्ली सरकार के पास नहीं हैं जिसकी वजह से काम करना बेहद मुश्किल हो रहा है।

आज एक अंग्रेज़ी दैनिक अख़बार में शीला दीक्षित जी का एक छोटा सा इंट्रव्यू भी छापा गया है लेकिन ऐसा लगता है कि अख़बार की तरफ़ से एक छोटी सी बात शीला दीक्षित जी से वो पूछना भूल गए। वो बात उन 5 शक्तियों के बारे में है जो उनकी सरकार के पास तो थी लेकिन क्या वर्तमान की सरकार के पास वो शक्तियां हैं?

‘हम बड़ी ही विनम्रता से शीला जी से उन पांच शक्तियों को बारे में पूछना चाहते हैं जो उनकी सरकार के वक्त उनके पास थीं। क्योंकि वे पांच शक्तियां वर्तमान की अरविंद केजरीवाल सरकार के पास नहीं हैं।’

क्या शीला दीक्षित जी के पास ये शक्तियां थीं?  

  1. अफ़सरों का तबादला करने की शक्ति, कोई अफ़सर अच्छा काम करता है तो उसे और ज्यादा अच्छा काम करने के लिए अच्छे विभाग में तैनात करने की शक्ति सरकार के पास होनी चाहिए।
  2. अगर कोई अफ़सर भ्रष्ट है, सरकार की बात नहीं मान रहा है तो उस पर अनुशानात्मक कार्रवाई कराने की शक्ति
  3. किसी भी अफ़सर के द्वारा या किसी विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार के मामले को एसीबी में देने की पावर, एंटी करप्शन ब्रांच की शक्तियां।
  4. सर्विसेज़ की पावर, यानि सरकारी भर्तियां करने की शक्तियां। बहुत से ऐसे विभाग हैं जहां आज स्टाफ़ की सख्त ज़रुरत है लेकिन वर्तमान सरकार भर्तियां नहीं कर पा रही है।
  5. क्या शीला जी के वक्त में भी हर फ़ाइल एलजी के पास जाती थी या नहीं? क्योंकि आज हर फाइल एलजी अपने पास मंगाते हैं।

कई मौकों पर आजकल शीला दीक्षित जी कहती हैं कि उपराज्यपाल और केंद्र सरकार के साथ रिश्ते अच्छे रखने होते हैं तभी काम होते हैं। लेकिन हम उनकी इस बात पर ये कहना चाहते हैं कि उनके पहले कार्यकाल के दौरान केंद्र में अटल बिहारी बाजपेई जी की सरकार थी जिनके तकरीबन हर राज्य और हर मुख्यमंत्री के साथ बेहद अच्छे रिश्ते होते थे. उसके बाद तो तकरीबन उन्हीं की पार्टी यानि कांग्रेस की सरकार केंद्र में रही है। लेकिन उसके विपरीत आज की तारीख में प्रधानमत्री नरेंद्र मोदी जी के संबंध आज हर ग़ैर एनडीए और ग़ैर भाजपा वाले राज्य के मुख्यमंत्रियों के साथ तकरीबन नरफ़रत भरे हैं, जिसते चलते संबंध अच्छे बनाना मुश्किल हो रहा है।

आज किस अफ़सर को कहां और किस विभाग में लगाना है, कहां भेजना है, इस तरह के सारे निर्णय केंद्र के प्रतिनिधि एलजी करते हैं।

जैसे दिल्ली पुलिस और डीडीए जैसे विभाग जो सीधे केंद्र सरकार के अधीन काम करते हैं तो इन विभागों के सभी अफ़सरों की तनख्वाह भी केंद्र सरकार देती है तो फिर क्यों ना दिल्ली सरकार में काम करने वाले सभी अफ़सरों की तनख्वाह भी केंद्र सरकार ही दे? क्योंकि दिल्ली सरकार में काम करने वाले सारे अफ़सर तो केंद्र सरकार के प्रतिनिधि यानि उपराज्यपाल के अधीन और उन्हीं के आदेश मानते हुए काम करते हैं तो फिर दिल्ली सरकार उनकी तनख्वाह क्यों दे?

‘दिल्ली सरकार के अफ़सर जब दिल्ली की जनता द्वारा चुनी हुई सरकार का आदेश ही नहीं मानते तो फिर दिल्ली की जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार उन अफ़सरों की तनख्वाह क्यों दे? क्या ऐसी कोई व्यवस्था नहीं बन सकती क्या?’

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sudhir

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