नई दिल्ली, 04 अप्रैल, 2024
दिल्ली सरकार को वर्तमान में प्रशासनिक स्तर पर कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। इसका कारण दिल्ली सरकार और केंद्रीय प्रशासन के बीच बढ़ता तनाव है। दिल्ली सरकार का कहना है कि केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी मंत्रियों के आदेशों-निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। जब एलजी से इन नौकरशाहों की शिकायत की जा रही है तो एलजी भी ऐसे अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं करते हैं। ऐसे में दिल्ली सरकार के लिए देश के कोर्ट ही एकमात्र सहारा हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा सर्विसेज विभाग को दिल्ली की चुनी हुई सरकार को देने का आदेश दिया था। इस आदेश के बावजूद केंद्र सरकार ने जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम लाकर दिल्ली सरकार की शक्तियों को और कम कर दिया है, जो सुप्रीम कोर्ट के फैसले का भी उल्लंघन है।
इसके अलावा केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त अधिकारी मंत्रियों के निर्देशों और अपीलों की खुलेआम उपेक्षा कर रहे हैं। अधिकारियों द्वारा दिल्ली जल बोर्ड का फंड, फरिश्ते स्कीम, बस मार्शल और स्मॉग टावर समेत सरकार के कई महत्वपूर्ण पहलों को रोक दिया गया है, जिससे दिल्ली के दो करोड़ लोगों को परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। दिल्ली सरकार का कहना है कि बिना किसी वजह के फाइलें लंबित रहने से अनावश्यक प्रशासनिक देरी हो रही है, जो पहले से ही अशांत प्रशासनिक परिदृश्य को और बढ़ा रही है।
यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि दिल्ली सरकार के अधिकार क्षेत्र का अतिक्रमण करने का प्रयास किया जा रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर से दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया था। सर्वाेच्च अदालत के पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने सर्वसम्मति से फैसला सुनाते हुए ‘सेवाओं’ के प्रबंधन और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीटी) के दैनिक कार्यों की देखरेख के लिए दिल्ली सरकार को अधिकार दिया था। दिल्ली के लिए अनुच्छेद 239एए में उल्लेखित महत्वपूर्ण संघीय ढांचे को उजागर करते हुए शीर्ष अदालत ने स्पष्ट रूप से फैसला सुनाया था कि लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई दिल्ली सरकार से केंद्र सरकार द्वारा उसके विधायी और कार्यकारी विशेषाधिकार नहीं छीनने चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट रूप से कहा था कि दिल्ली सरकार लोकतांत्रिक रूप से चुनी हुई सरकार है, जो दिल्ली के लोगों के लिए जवाबदेह है। दिल्ली सरकार को केंद्र की एक इकाई के रूप में शामिल नहीं किया जा सकता है। केंद्र सरकार को संविधान द्वारा निर्धारित सीमाओं के अंदर अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करना चाहिए।
कुछ ही दिनों बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाया कि दिल्ली की चुनी हुई सरकार के पास पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और भूमि से संबंधित सेवाओं को छोड़कर अन्य सभी सेवाओं पर अधिकार होगा। केंद्र सरकार ने राष्ट्रपति की विशेष शक्तियों को लागू करते हुए एक अध्यादेश जारी किया और फिर सुप्रीम कोर्ट के नियम को पलटने के लिए जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम पारित किया। इस संशोधन के जरिए केंद्र द्वारा नियुक्त नौकरशाहों को चुने हुए मुख्यमंत्री की ओर से लिए गए निर्णयों को रद्द करने का अधिकार प्राप्त हो गया। दिल्ली एक आधा राज्य राज्य होने के बावजूद यह विधेयक राजधानी में चुनावी लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को कमजोर करता है। यह विधेयक सुप्रीम कोर्ट के फैसले का उल्लंघन करने के साथ ही भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों को दरकिनार करता है।
जीएनसीटीडी एक्ट संशोधन के बाद से केंद्र से नियुक्त नौकरशाहों द्वारा कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। दो करोड़ दिल्लीवासियों के जनहित की फाइलें अनिश्चित समय के लिए अधिकारी अपने पास रख ले रहे हैं। बार-बार निर्देश देने के बाद भी अधिकारी निर्वाचित प्रतिनिधियों (मंत्रियों) के निर्देशों का पालन नहीं कर रहे हैं। ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति के कई उदाहरण हैं। मसलन, दिल्ली जल बोर्ड का फंड महीनों तक रुका रहा, जिससे राष्ट्रीय राजधानी में जल संकट पैदा हो गया। बेलगाम नौकरशाही ने ‘फरिश्ते योजनाएं’ बंद कर दीं। हम छोटी-छोटी चीजों के लिए भी सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाने के लिए मजबूर हैं।
सर्दी के मौसम के दौरान दिल्ली में प्रदूषण को कंट्रोल करने के लिए दिल्ली सरकार ने स्मॉन्ग टावर लगाने का फैसला किया। लेकिन केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त नौकरशाहों ने स्मॉग टावरों को बंद करा दिया। सरकार को दिल्लीवासियों के हित में सुप्रीमकोर्ट जाने के लिए मजबूर होना पड़ा और कोर्ट ने एक बार चुनी हुई सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया।
जब भी हम उपराज्यपाल (एलजी) से नौकरशाहों की निष्क्रियता या असहयोगी रवैये के बारे में बताते हैं और उनसे उचित हस्तक्षेप की मांग करते हैं, तब एलजी कार्रवाई नहीं करते हैं। जब हमारे पास कोई विकल्प नहीं बचता है तो हम दो करोड़ दिल्लीवासियों के हित में सुप्रीमकोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं। निर्वाचित प्रतिनिधि होने के नाते यह हमारा नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम दिल्ली के नागरिकों को सहूलियतें मुहैया कराने में कोई कमी न रहने दें। इसी उद्देश्य से हम सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटा रहे हैं। जब भी हमने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, कोर्ट का आदेश दिल्लीवासियों के हित में आया है। इसके लिए हम सुप्रीम कोर्ट का ह्दय से आभारी हैं