महिला एवं बाल विकास मंत्री आतिशी ने बुधवार को दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के जर्नल “चिल्ड्रन फर्स्ट-जर्नल ऑन चिल्ड्रन लाइव्स” के चौथे अंक का विमोचन किया। साथ ही उन्होंने जर्नल के चाइल्ड कंट्रीब्यूटर्स को भी सम्मानित किया। जर्नल के इस अंक की थीम ‘बच्चों से संबंधित मुद्दों और उनके अधिकार’ है। ये एक समावेशी जर्नल है जो डिस्कशन, बेहतर प्रैक्टिसेज को साझा करने, रिफ्लेक्शन, आलोचना-समालोचना, पालिसी व विभिन्न बुक रिव्यु और रिसर्च पर आधारित है | इसका उद्देश्य बच्चों के अधिकारों से जुड़े के मुद्दों, उनसे जुड़े पॉलिसी प्रैक्टिसेज पर फोकस करना है| यह शिक्षकों, हेल्थ प्रोफेशनल्स, सिविल सोसाइटीज आर्गेनाइजेशनस आदि को भारत में बच्चों की स्थिति पर अपने विचार और राय साझा करने के लिए मंच प्रदान करता है।
जर्नल का चौथा अंक बच्चों के जीवन को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण मुद्दों को संबोधित करने के लिए विभिन्न डोमेन और कई विषयों पर फोकस करता है। यह अलग-अलग संदर्भों में बच्चों की जरूरतों और अधिकारों को संवेदनशीलता से संबोधित करने का काम भी करता है। साथ ही जर्नल अनजाने में बच्चों को लेबल करने, कानूनी प्रक्रियाओं और बच्चों से जुड़ी सामाजिक जांच और पूछताछ के दौरान संवेदनशील बातचीत और गोपनीयता जैसे मुद्दों पर भी प्रकाश डालता है।
पत्रिका के विमोचन के मौक़े पर महिला एवं बाल विकास मंत्री आतिशी ने सुश्री आतिशी ने डीसीपीसीआर को बधाई दी और कहा, “जर्नल का नाम ही इस तथ्य के बारे में बहुत कुछ बताता है कि हमें अपने बच्चों को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा कि , “दिल्ली में अभी कुछ दिन पहले एक किशोर लड़की की निर्मम हत्या हुई थी और लोग तमाशबीन बने उसे देख रहे थे। बेशक, कानून और व्यवस्था की स्थिति एक तथ्य है, लेकिन इसने एक समाज और एक देश के रूप में हम सभी के लिए कहीं अधिक गहरा सवाल खड़ा कर दिया है, कि आख़िर गलती कहा हुई है? उन्होंने कहा कि इस घटना ने सभी के मन में एक सवाल खड़ा कर दिया है कि एक समाज, देश और शिक्षाविदों के रूप में हम ऐसा क्या कर रहे हैं जिससे ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो।
केजरीवाल सरकार के विज़न को साझा करते हुए, मंत्री आतिशी ने कहा, “पिछले 8 वर्षों में, दिल्ली सरकार ने राजधानी में हर बच्चे को समान अवसर प्रदान करने और शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए प्रतिबद्ध से काम किया है। इसके लिए सरकार ने सालाना अपने बजट का सबसे बड़ा हिस्सा, 25 फीसदी शिक्षा पर खर्च कर एक मिसाल कायम की है।
उन्होंने कहा कि देश में एक आम धारणा है कि अगर कोई बच्चा एक अमीर परिवार में पैदा होता है, जहां उसके माता-पिता के पास महंगे निजी स्कूल की फीस भरने के लिए पैसे होते हैं, तो वे अपने बच्चे को महंगे निजी स्कूल में दाखिला दिलाते हैं। वहीं दूसरी ओर गरीब परिवार का एक बच्चा है जिसके माता-पिता उसे महंगे निजी स्कूल में दाखिला दिलाने में सक्षम नहीं हैं, इसलिए वह सरकारी स्कूल में दाखिला लेने को मजबूर है।’
उन्होंने आगे कहा कि अगर हम देश भर के सरकारी स्कूलों के आंकड़ों को देखें, तो यह पता चलता है कि 50 प्रतिशत से अधिक संभावना है कि अगर कोई बच्चा सरकारी स्कूल में प्रवेश लेता है, तो वह अपनी 12वीं कक्षा की शिक्षा पूरी करने से पहले ही पढ़ाई छोड़ देगा। यदि वे अपनी शिक्षा पूरी नहीं कर पाते तो वे किसी की दुकान में काम करने या घरेलू सहायकों के रूप में काम करने के लिए मजबूर होते है। उन्होंने कहा कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, लेकिन शिक्षा के अभाव में यदि कोई बच्चा ये काम को मजबूर हो रहा है तो ये ये बड़ी विफलता है।
महिला एवं बाल विकास मंत्री ने कहा, “मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों के बुनियादी ढाँचे को वर्ल्ड क्लास बनाया, इससे छात्रों में आत्मविश्वास और गर्व की भावना आई। इतना ही नहीं हमने हैप्पीनेस करिकुलम, एंत्रप्रेन्योरशिप माइंडसेट करिकुलम और देशभक्त करिकुलम जैसे पाठ्यक्रम के माध्यम से अपने स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों के माइंडसेट को बदलने का काम किया। आज दिल्ली सरकार के स्कूलों में लागू किए जा रहे ये सभी पाठ्यक्रम बच्चों को अच्छा इंसान बनने,देशभक्त नागरिक बनने और निडर बनने पर फोकस करता हैं।
उन्होंने कहा कि ये कदम सरकार द्वारा प्राथमिकता पर उठाए गए है क्योंकि जब एक छात्र इस मानसिकता के साथ सरकारी स्कूल में जाता है कि वह दूसरे दर्जे के नागरिक हैं, तो वे अपमान महसूस करता हैं। और ये कुंठा उन्हें उन क्रूरता की घटनाओं की ओर ले जाती है, जिसे हमने हाल ही में देखा है।
मंत्री आतिशी ने आगे कहा, “नृशंस हत्या की हालिया घटना से पता चलता है कि हमें अपने स्कूलों में पढ़ रहे बच्चों को अच्छा नागरिक बनाने के लिए शिक्षा और उनके भविष्य में निवेश करने की आवश्यकता है। और ढांचागत बदलाव के साथ-साथ हमें अपने पाठ्यक्रम में शैक्षणिक बदलाव और बदलाव लाने की भी जरूरत है। दिल्ली सरकार ने अपने स्कूलों के माध्यम से इसकी शुरुआत कर दी है।
उन्होंने कहा कि आज इस जर्नल का शुभारंभ हमें याद दिलाता है कि हमें एक ऐसी दुनिया बनाने की जरूरत है जो बच्चों के लिए अनुकूल, न्यायपूर्ण और खुशहाल हो।
उल्लेखनीय है कि, जर्नल के चौथे संस्करण में, डीसीपीसीआर को बीस से अधिक राज्यों के शिक्षाविदों, बाल अधिकार कार्यकर्ताओं, शोधकर्ताओं, शिक्षकों से बहुत सी प्रविष्टियां प्राप्त हुईं, जिसमें हिमाचल प्रदेश से कर्नाटक तक, उत्तर प्रदेश से झारखंड, दिल्ली से लेकर तमिलनाडु तक के बच्चों के जीवन को शामिल किया गया। इसके अलावा आयोग को देशभर के बच्चों से पेंटिंग और विभिन्न राइट-अप प्राप्त हुए।
इनमें से 30 लेख (बच्चों के 6 लेख सहित) जर्नल में प्रकाशित हुए हैं जिसमेंओरिजिनल अकेडमिक रिसर्च, बेस्ट प्रैक्टिसेज, वॉइस फ्रॉम ग्राउंड, रिफ़्लेकशन, टिप्पणियां, आलोचनाएं, नीति विश्लेषण और पुस्तक समीक्षा शामिल हैं। जर्नल में देश भर के बच्चों की पेंटिंग भी शामिल हैं। इसमें शामिल लेखक भारत व विश्व भर के प्रतिष्ठित संस्थानों से आते हैं।
पिछले संस्करणों की तरह ही, चौथा संस्करण भी पांच खंडों में है। जिसमें रिसर्च, क्रिटिक एंड कमेंट्री, बेस्ट प्रैक्टिसेज, वॉइस फ्रॉम ग्राउंड, और बुक रिव्यू तथा इंटरव्यू शामिल हैं। इसके अतिरिक्त, इसमें लेखन और चित्रों सहित बच्चों के मूल योगदान को प्रदर्शित करने वाला एक विशेष खंड है।
पत्रिका के विमोचन के मौक़े पर यूएनसीआरसी के वाइस-चेयर, प्रोफेसर फिलिप डी. जाफ; यूनिसेफ इंडिया में चीफ ऑफ चाइल्ड प्रोटेक्शन सोलेदाद हेरेरो;डीसीपीसीआर के चेयरपर्सन अनुराग कुंडू; अतिरिक्त शिक्षा निदेशक नंदिनी महाराज; प्रधान शिक्षा सलाहकार शैलेंद्र शर्मा; चिल्ड्रन फर्स्ट जर्नल की चीफ एडिटर डॉ. विनीता कौल सहित अन्य गणमान्य लोग शामिल रहे।