नई दिल्ली, 08 अप्रैल 2024
एलजी कार्यालय द्वारा चुनी हुई सरकार के अधीन वाले विषयों (हस्तांतरित विषय) को लेकर भ्रम पैदा करने पर दिल्ली सरकार ने गहरी नाराजगी व्यक्त की है। दिल्ली सरकार को संविधान के अनुसार हस्तांतरित विषयों पर अधिकार प्राप्त है। कुछ दिन पहले एलजी ऑफिस ने गृह मंत्रालय को भेजे एक नोट में कहा था कि दिल्ली सरकार को हस्तांतरित विषयों पर उसका कोई नियंत्रण या अधिकार नहीं है। खासकर वित्त और जल से संबंधित विषय पर एलजी की कोई भूमिका नहीं है। लेकिन सोमवार को गृह मंत्रालय को भेजे नोट में एलजी कह रहे हैं कि मंत्री हस्थानांतरित विषयों पर उनके सवालों का जवाब नहीं दे रहे हैं तो क्या एलजी एक बात पर कायम नहीं रह सकते?
दिल्ली की चुनी हुई सरकार को निशाना बनाते हुए एलजी ऑफिस द्वारा बार-बार हमला किया जाना बेहद शर्मनाक है। जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम 2023 के बाद यह चिंताएं और अधिक बढ़ गई हैं। क्योंकि अफसर निर्वाचित सरकार के प्रति असंवेदनशील, गैर-उत्तरदायी और गैर-जिम्मेदार दिखाई दे रहे हैं। एलजी के इस दावे के बावजूद कि हस्थानांतरित विषयों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है, वो इस पर चर्चा के लिए मीटिंग की मांग पर सवाल उठाते हैं। दिल्ली सरकार ने दिल्ली के नागरिकों के हितों के खिलाफ काम कर रहे अफसरों के खिलाफ जांच की मांग की, लेकिन एलजी ऑफिस से केवल बहानेबाजी की गई। चिकित्सा आपूर्ति की कमी में मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव की गलती को उजागर करते हुए सरकार ने एलजी से अपना संवैधानिक कर्तव्य निभाने का आग्रह करते हुए सोशल मीडिया पर कमेंट्स की बजाय तुरंत कार्रवाई की अपील की है।
सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों से यह साफ हो चुका है कि संविधान के अनुसार, एलजी के अधिकार केवल पुलिस, ऑर्डर और लैंड तक ही सीमित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई 2023 को दिल्ली के एनसीटी के सिविल सेवकों और दैनिक प्रशासन को नियंत्रित करने की दिल्ली सरकार की शक्तियों को बरकरार रखा था। भारत के मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली पांच जजों की पीठ ने माना था कि एलजी उन सभी मामलों के लिए मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह से बंधे हैं, जहां विधानसभा के पास कानून बनाने की शक्ति है। उन्होंने यह भी फैसला सुनाया कि मंत्री परिषद द्वारा लिए गए निर्णयों पर केवल एलजी से परामर्श की आवश्यकता है, उनकी सहमति की आवश्यकता नहीं है।
केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले को नजरअंदाज कर दिया, जिसमें दिल्ली सरकार को पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था और जमीन के अलावा सभी सेवाओं पर नियंत्रण दिया गया था। केंद्र सरकार राष्ट्रपति की विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए एक अध्यादेश लाई और जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम पारित करके सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलट दिया। जिससे केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किए गए अधिकारियों को जनता द्वारा चुने गए मुख्यमंत्री के फैसलों की अवहेलना करने का अधिकार मिल गया।
भले ही दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा प्राप्त न हो, लेकिन यह विधेयक दिल्ली में चुनावी लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों को कमजोर करता है। यह भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है और सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले का खंडन करता है।
जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम पारित होने के बाद से आधिकारी जिद्दी, गैर-जवाबदेह और दिल्ली के दो करोड़ नागरिकों के चुने हुए प्रतिनिधियों के प्रति गैर-जिम्मेदार हो गई है। अधिकारी अक्सर जनता के लिए जरूरी प्रोजेक्ट्स को पूरा करने के लिए मंत्रियों के आदेशों और निर्देशों की अनदेखी करते हैं। उनका कहना है कि वो मंत्रियों के प्रति जवाबदेह नहीं हैं और कुछ मुद्दे उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं हैं। दिल्ली के लिए पर्याप्त चिकित्सा आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए स्वास्थ्य मंत्री द्वारा कई प्रयासों के बावजूद, आधिकारियों ने इन अनुरोधों को अनदेखा किया है। यहां तक कि जब दिल्ली विधानसभा अधिकारियों को जवाबदेह ठहराने के आदेश पारित करती है, तब भी हमारे पास अदालतों का सहारा लेने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचता है।
एलजी कह रहे हैं कि स्थानांतरित विषयों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है, फिर वो उन विषयों पर चर्चा क्यों करना चाहते हैं? 1 अप्रैल 2024 को दिल्ली जल बोर्ड के पेमेंट पर सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान एलजी के वकील मुकुल रोहतगी ने कहा था कि पानी एक स्थानांतरित विषय है और इसमें एलजी की कोई भूमिका नहीं है। जब एलजी साहब खुद कहते हैं कि इसमें उनकी कोई भूमिका नहीं है, तो वो इन विषयों पर बैठकें क्यों बुला रहे हैं?
यह ध्यान देने वाली बात है कि भूमि, सार्वजनिक व्यवस्था और पुलिस के अलावा बाकी मामलों में हम एलजी ऑफिस से यह अपेक्षा रखते हैं कि वो उन अधिकारियों के खिलाफ तुरंत जांच शुरू करें, जिनकी वजह से दिल्ली के दो करोड़ लोगों को तकलीफ हो रही है। यह बहुत दुखद बात है कि इतने गंभीर मामला होने के बाद भी एलजी ऑफिस से बेवजह के तर्क दिए जा रहे हैं।
दिल्ली की स्वास्थ्य व्यवस्था में आवश्यक दवाओं की कमी मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव की वजह से पैदा हुई है। इसलिए यह जरूरी है कि एलजी साहब दो करोड़ दिल्लीवासियों के हित में इस मामले की व्यापक जांच करवाएं।
एलजी द्वारा अधिकारियों पर कोई अनुशासनात्मक कार्रवाई न करने के कारण दिल्लीवासियों को पानी और सीवर से जुड़ी समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। एलजी साहब को इस मामले की गंभीरता के बारे में कई बार बताया गया है। इसके बावजूद उन्होंने उन दोषी अधिकारियों के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की, जिन्होंने जनहित से जुड़ी फाइलों को महीनों तक अपने पास रोके रखा।
इसके अलावा, यह स्पष्ट है कि एलजी ने जानबूझकर अपने चहेते अधिकारियों को दिल्ली सरकार के प्रमुख विभागों में नियुक्त किया है। इन अधिकारियों ने न केवल किसी भी नई परियोजनाओं और नीतियों को रोकने का निर्देश दिया है, बल्कि चल रही योजनाओं को भी बाधित किया है।
हम एलजी से अनुरोध करते हैं कि वे अपना संवैधानिक कर्तव्य निभाएं, चुनी हुई सरकार के कार्यों में बाधा डालना बंद करें और दिल्ली के लोगों की समस्याओं पर निम्न स्तर की टिप्पणी से बचें। साथ ही, हम एलजी से उन अधिकारियों की तत्काल जांच कर उनके खिलाफ कार्रवाई करने की मांग कर हैं, जो बार-बार मंत्रियों के निर्देशों का उल्लंघन कर रहे हैं। यह जरूरी है कि एलजी इन दोषी अधिकारियों के खिलाफ सुधारात्मक कार्रवाई करने के लिए जीएनसीटीडी संशोधन अधिनियम के संदर्भ में अपनी शक्तियों का प्रयोग करें। ऐसे सख्त कदमों के जरिए ही शासन की अखंडता को बरकरार रखा जा सकता है और जनता के विश्वास को वापस जीता जा सकता है।